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गीता प्रेस, गोरखपुर >> आशा की नयी किरणें

आशा की नयी किरणें

रामचरण महेन्द्र

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2005
पृष्ठ :214
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 1019
आईएसबीएन :81-293-0208-x

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प्रस्तुत है आशा की नयी किरणें...

आर्थिक सफलता के मानसिक संकेत


आप आर्थिक रूपसे सफल होना चाहते हैं, तो समृद्धिके विचारोंको बहुतायतसे मनोमन्दिरमें प्रविष्ट होने दीजिये। यह मत समझिये कि आपका सरोकार दीखता, क्षुद्रता, नीचतासे है। संसारमें यदि कोई चीज सबसे निकृष्ट है तो वह विचार-दारिद्रय् ही है। जिस मनुष्यके विचारोंमें दरिद्रता प्रविष्ट हो जाती है, वह रुपया-पैसा होते हुए भी सदैव भाग्यका रोना रोया करता है। दरिद्रताके अनिष्टकारी विचार हमें समृद्धिशाली होनेमें रोकते है; दरिद्री ही बनाये रखते हैं।

आप दरिद्री, गरीब या अनाथहीन अवस्थामें रहनेके हेतु पृथ्वीपर नहीं जन्मे हैं। आप केवल मुट्ठी भर अनाज या वस्त्रके लिये दासवृत्ति करते रहनेको उत्पन्न नहीं हुए हैं।

गरीब क्यों सदैव हीनावस्थामें रहता है? इसका प्रधान कारण यह है कि वह उच्च आकांक्षाओं, उत्तम पवित्र कल्पनाओं, स्वास्थ्यदायक स्फूर्तिमय विचारोंको नष्ट कर देता है; आलस्य और अविवेकमें डूब जाता है, हृदयको संकुचित, क्षूद्र, प्रेम-विहीन और निराश बना लेता है। सीमाक्रान्त दरिद्रता आनेपर जीवन ठहर-सा जाता है, प्रगति अवरुद्ध हो जाती है; मनुष्य ऋणसे दबकर निष्प्रभ हो जाता है, उसे अपने गौरव, स्वाभिमानको भी सुरक्षित रखना दुष्कर प्रतीत होता है। दरिद्री विचारवाले असमयमें ही वृद्ध होते देखे गये है। जो बच्चे दर्द्री घरोंमें जन्म लेते हैं, उनके गुप्त मनमें दरिद्रताकी गुप्त मानसिक ग्रन्थियाँ इतनी जटिल हो जाती हैं कि वे जीवनमें कुछ भी उच्चता या श्रेष्ठता प्राप्त नहीं कर सकते। दरिद्रता कमलके समान तरोताजा चेहरोंको मुर्झा देती है, सर्वोक्तष्ट इच्छाओंका नाश हो जाता है। यह दुस्सह मानसिक दरिद्रता मनुष्यको पीस देनेवाली है। सैकड़ों मनुष्य इसी क्षुद्रताके गर्तमें डूबे हुए हैं।

आर्थिक सफलताके लिये भी एक मानसिक परिस्थिति, योग्यता एवं प्रयत्नशीलताकी आवश्यकता है। लक्ष्मीका आवाहन करनेके हेतु भी मानसिक दृष्टिसे आपको कुछ पूजाका सामान एकत्रित करना होता है।

दीपावलीके लक्ष्मी-पूजनके अवसरपर आप घर झाड़ते, लीपते, पोतते, सजाते हैं। नयी-नयी तस्वीरें, कलात्मक वस्तुओंसे घरको चित्रित करते हैं, अपने शरीरपर सुन्दर वस्त्र और आभूषण धारण करते हैं। इसी भांति मानसिक पूजा भी किया कीजिये। अर्थात् मनके कोने-कोनेसे दरिद्रता, गरीबी, परवशता, क्षूद्रता, संकुचितता, ऋणके जाले विवेककी झाड़ूसे साफ कर दीजिये; मानसिक पटलको आशावादिताकी सफेदीसे पोत लीजिये। मानसिक घरमें आनन्द, आशा, उत्साह, प्रसन्नता, हास्य, उत्फुल्लता, खुशमिजाजीके मनोरम चित्र लगा लीजिये। फिर श्रम और मितव्ययताके नियमोंके अनुसार लक्ष्मीदेवीकी साधना कीजिये। आर्थिक सफलता आपकी होगी। सब विद्याओंमें शिरोमणि वह विद्या है जो हमें कुत्सित और निकृष्ट विचारोंसे मनको साफ करना सिखाती है।

परम पिता परमात्माकी कभी यह इच्छा नहीं कि हम आर्थिक दृष्टिसे भी दूसरोंके गुलाम बने रहें। हमें उन्होंने विवेक दिया है, जिसे धारणकर हम उचित-अनुचित खर्चोंमें अन्तर समझ सकते हैं, विषय-वासना और नशीली वस्तुओंसे मुक्त हो सकते हैं, अपने अनुचित खर्चें, विलासिता और फैशनमें कमी कर सकते हैं, घरमें होनेवाले नाना प्रकारके अपव्ययको रोक सकते हैं, अपनी आय वृद्धि करना हमारे हाथकी बात है। जितना हम परिश्रम करेंगे, योग्यताओंको बढ़ायेंगे, अपनी विद्यामें सर्वोत्कृष्टता (Excellence), मान्यता, निपुणता प्राप्त करेंगे, उसी अनुपातमें हमारी आय भी बढ़ती चली जायगी। संसारमें अन्याय नहीं है। सबको अपनी-अपनी योग्यता और निपुणताके अनुसार धन प्राप्त होता है। फिर क्यों न हम अपनी योग्यता बढ़ाये और संघर्षमें अपने-आपको हर प्रकारसे योग्य प्रमाणित करें।

श्रीओरिसन मार्डनने अपनी पुस्तक 'शान्ति, शक्ति और समृद्धि' (Peace Power and Planty) में कई आवश्यक तत्त्वोंकी ओर ध्यान आकर्षित करते हुए लिखा है-

'विश्वके अनेक दरिद्री लोगोंके कारणको खोजिये तो पता लगेगा कि उन्हें आत्मविश्वास नहीं, उन्हें यह श्रद्धा नहीं है कि वे दरिद्रतासे छुटकारा पा सकते हैं। हम गरीबोंको बताना चाहते हैं कि वे ऐसी कठोर स्थितिसे भी अपने-आपको उन्नत बना सकते हैं। सैकड़ों नहीं, प्रत्युत हजारों ऐसी स्थितिमें उन्नत धनवान् बने हैं और इसलिये हम कहते हैं कि इन गरीबोंके लिये भी आशा है। वे दुर्धर्ष परिस्थितिको बदल सकते हैं। संसारमें आत्मविश्वास ही ऐसी कुंजी है कि सफलताका द्वार खोल देती है। 

'प्रकृतिने मनुष्यको ऊपर देखनेकी आज्ञा प्रदान की है, नीचेकी ओर नहीं। मानव-जन्म ऊपर चढ़नेके लिये हुआ है, नीचे गिरनेके लिये नहीं।

'दरिद्रता वास्तवमें मानसिक रोग है, इस रोगसे प्रयत्न करनेपर प्रत्येक व्यक्ति छुकारा पा सकता है। एक गरीब युवकने अमीर बननेके लिये अपनी आत्मा और योग्यतापर भरोसा करना प्रारम्भ किया। उसने निश्चय किया कि उसके अंदर वह योग्यता-शक्ति विद्यमान है जिसके द्वारा मनुष्य संसारमें नामांकित होते हैं। वह निरन्तर अपनी शुभ्र कल्पनाओंको साकाररूप देता गया और सफलताके उच्चतम शिखरपर पहुँच गया।' आशा, हिम्मत और सतत उद्योगके उत्पादक और उत्साही वातावरणमें रहनेसे प्रत्येक मनुष्य समृद्धिशाली बन सकता है।

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    अनुक्रम

  1. अपने-आपको हीन समझना एक भयंकर भूल
  2. दुर्बलता एक पाप है
  3. आप और आपका संसार
  4. अपने वास्तविक स्वरूपको समझिये
  5. तुम अकेले हो, पर शक्तिहीन नहीं!
  6. कथनी और करनी?
  7. शक्तिका हास क्यों होता है?
  8. उन्नतिमें बाधक कौन?
  9. अभावोंकी अद्भुत प्रतिक्रिया
  10. इसका क्या कारण है?
  11. अभावोंको चुनौती दीजिये
  12. आपके अभाव और अधूरापन
  13. आपकी संचित शक्तियां
  14. शक्तियोंका दुरुपयोग मत कीजिये
  15. महानताके बीज
  16. पुरुषार्थ कीजिये !
  17. आलस्य न करना ही अमृत पद है
  18. विषम परिस्थितियोंमें भी आगे बढ़िये
  19. प्रतिकूलतासे घबराइये नहीं !
  20. दूसरों का सहारा एक मृगतृष्णा
  21. क्या आत्मबलकी वृद्धि सम्मव है?
  22. मनकी दुर्बलता-कारण और निवारण
  23. गुप्त शक्तियोंको विकसित करनेके साधन
  24. हमें क्या इष्ट है ?
  25. बुद्धिका यथार्थ स्वरूप
  26. चित्तकी शाखा-प्रशाखाएँ
  27. पतञ्जलिके अनुसार चित्तवृत्तियाँ
  28. स्वाध्यायमें सहायक हमारी ग्राहक-शक्ति
  29. आपकी अद्भुत स्मरणशक्ति
  30. लक्ष्मीजी आती हैं
  31. लक्ष्मीजी कहां रहती हैं
  32. इन्द्रकृतं श्रीमहालक्ष्मष्टकं स्तोत्रम्
  33. लक्ष्मीजी कहां नहीं रहतीं
  34. लक्ष्मी के दुरुपयोग में दोष
  35. समृद्धि के पथपर
  36. आर्थिक सफलता के मानसिक संकेत
  37. 'किंतु' और 'परंतु'
  38. हिचकिचाहट
  39. निर्णय-शक्तिकी वृद्धिके उपाय
  40. आपके वशकी बात
  41. जीवन-पराग
  42. मध्य मार्ग ही श्रेष्ठतम
  43. सौन्दर्यकी शक्ति प्राप्त करें
  44. जीवनमें सौन्दर्यको प्रविष्ट कीजिये
  45. सफाई, सुव्यवस्था और सौन्दर्य
  46. आत्मग्लानि और उसे दूर करनेके उपाय
  47. जीवनकी कला
  48. जीवनमें रस लें
  49. बन्धनोंसे मुक्त समझें
  50. आवश्यक-अनावश्यकका भेद करना सीखें
  51. समृद्धि अथवा निर्धनताका मूल केन्द्र-हमारी आदतें!
  52. स्वभाव कैसे बदले?
  53. शक्तियोंको खोलनेका मार्ग
  54. बहम, शंका, संदेह
  55. संशय करनेवालेको सुख प्राप्त नहीं हो सकता
  56. मानव-जीवन कर्मक्षेत्र ही है
  57. सक्रिय जीवन व्यतीत कीजिये
  58. अक्षय यौवनका आनन्द लीजिये
  59. चलते रहो !
  60. व्यस्त रहा कीजिये
  61. छोटी-छोटी बातोंके लिये चिन्तित न रहें
  62. कल्पित भय व्यर्थ हैं
  63. अनिवारणीयसे संतुष्ट रहनेका प्रयत्न कीजिये
  64. मानसिक संतुलन धारण कीजिये
  65. दुर्भावना तथा सद्धावना
  66. मानसिक द्वन्द्वोंसे मुक्त रहिये
  67. प्रतिस्पर्धाकी भावनासे हानि
  68. जीवन की भूलें
  69. अपने-आपका स्वामी बनकर रहिये !
  70. ईश्वरीय शक्तिकी जड़ आपके अंदर है
  71. शक्तियोंका निरन्तर उपयोग कीजिये
  72. ग्रहण-शक्ति बढ़ाते चलिये
  73. शक्ति, सामर्थ्य और सफलता
  74. अमूल्य वचन

विनामूल्य पूर्वावलोकन

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